ट्यूनीशियाई कवि अब्दुल कासिम अल-शाबी की दो कविताएँ

दुनियाभर के तानाशाहों के नाम

जालिम तानाशाह, अँधेरे के आशिक, जिन्दगी के दुश्मन
तुमने कमजोर लोगों के डील-डौल का मजाक उड़ाया
उनके खून से लतपथ है तुम्हारी हथेली
तुमने वजूद के जादू का रूप बिगाड़ दिया
और खेतों में बो दिए गम के बीज

ठहरो— खुद को मत बहलाओ बहार के मौसम
आसमान के साफ होने या सुबह की रोशनी से
क्योंकि क्षितिज पर छाया है अँधेरे का खौफ,
बादल की गड़गड़ाहट, हवा के झोंके

ख़बरदार, कि राख के नीचे आग ही आग है
और जो काँटा बोता है वही जख्मी होता है
उधर देखो, कि हमने इन्सानी दिमागों की
और उम्मीद के फूलों की फसल उगायी है
और हमने धरती के दिल को खून से सींचा है
और इसे आंसुओं से तरबतर किया है
खून का दरिया तुमको बहा ले जायेगा
और आग का तूफ़ान तुमको निगल लेगा।

दूसरी कविता

अगर अवाम जिन्दगी को चुन ले (आजादी समेत)
मुकद्दर साथ देगा और करामात करेगा
अंधेरा यकीनन दूर हो जाएगा
और जंजीरें लाजिमी तौर पर टूट जाएँगी।

{ट्यूनीशियाई कवि अब्दुल कासिम अल-शाबी (1909-1934)}

(अरबी से अंग्रेजी अनुवाद– अब्दुल इस्कन्दर, अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद– दिगम्बर)

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