–लेस्ली विश्मान, अक्टूबर 1987
4 मई 1970, ओहियो के राष्ट्रीय सुरक्षा सैनिकों ने प्रदर्शनकारी छात्रों के एक समूह पर गोली चलायी, जिसमें चार छात्र मारे गये और नौ घायल हुए। पूरे देश ने गगन भेदी गर्जना के साथ इस घटना का विरोध किया– राज्य–समर्थित इस हत्याकाण्ड की निंदा बहुत थोड़े लोगों ने ही की, जबकि भारी बहुमत ने इस कृत्य के लिए ‘‘कानून और व्यवस्था’’ लागू करने पर खुशी जाहिर की ।
वितयनाम में होने वाले युद्ध का विरोध, जिसमें छात्रों ने बड़ी भूमिका निभायी उसने देश को दो भाग में बाँट दिया और राज्य मशीनरी ने लम्बे समय से जारी इस परम्परागत तौर–तरीके का सहारा लिया कि जनता की आवाज को खामोश करने के लिए कुछ लोगों की हत्या करनी पड़ती है और हमेशा की तरह इस नीति ने अपना काम किया। केन्ट प्रान्त में छात्र आन्दोलन अपने चरम पर था ।
विडम्बना है कि जिस समय राष्ट्रीय सुरक्षा सैनिकों ने केन्ट प्रान्त में छात्रों को गोलियों से भून दिया था, उसी समय मेयर रिचर्ड डैली हे मार्केट चैराहे के उस पुलिस स्मारक को पुनः समर्पित कर रहे थे जिसे सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक सोसाइटी (एसडीएस) के उग्र धड़े के सदस्य वेदरमैन ने 6 अक्टूबर 1969 को बम से उड़ा दिया था। शिकागो द्वारा 4 मई, 1886 के दंगों में उसकी ओर से लड़ने वालों को समर्पित हे मार्केट चैराहे के स्मारक के जरिये कानून लागू करने वाले उन अधिकारियों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में विराट मजदूर आन्दोलन का गला घोंटने के लिए दमन का सहारा लिया था ।
1850 के पूरे दशक के दौरान भारी संख्या में मजदूर 8 घण्टे के कार्यदिवस की माँग के इर्द–गिर्द संगठित हुए। पूरे देश में काम के घण्टे 8 करने की माँग करने वाले सैकड़ों संगठन उठ खड़े हुए। उनके दवाब में 1867 के मार्च में इलिनॉयस जनरल एसेम्बली ने 8 घण्टे कार्य दिवस को इलिनॉयस में कानूनी घोषित कर दिया। परन्तु मजदूरों पर फिर भी 10, 12 और 14 घण्टों तक काम करने के लिए दवाब डाला जाता था। जिन लोगों ने 8 घण्टों से अधिक काम करने से मना किया, उन्हें नौकरी से निकाल कर उनकी जगह बेरोजगारों की स्थायी फौज से नये मजदूर रख लिये गये ।
संगठित व्यापार और श्रम संघ ने (जो बाद में अमरीकी श्रम संघ बन गया) एक मई, 1886 को पहला मई दिवस घोषित किया, जिसे 8 घण्टे का कार्य दिवस लागू करने की अन्तिम समय सीमा माना गया। टेरेन्स पाउडरली व नेशनल नाइट्स ऑफ लेबर जैसे संगठनों द्वारा विरोध किये जाने के बावजूद उस दिन देशव्यापी हड़ताल हुई जिसमें 12 हजार फैक्ट्रियों के 3 लाख, 40 हजार मजदूरों ने हिस्सा लिया। शिकागो नाइट्स ने अल्बर्ट पार्सन्स के प्रभाव में प्रस्ताव का उत्साहपूर्वक समर्थन किया ।
एक मई को अल्बर्ट पार्सन्स ने अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ शिकागो की गलियों में 80 हजार लोगों के आन्दोलनकारी जूलूस की अगुवाई की । 16 फरवरी से मैकोर्मिक प्लांट में तालाबन्दी के कारण निकाले गये 1500 मजदूरों में से ज्यादातर मजदूरों ने आन्दोलन में हिस्सा लिया। पुलिस और पिंकार्टन्स ने अपने हाथों में रायफल लेकर मकान की छतों से इस पूरे आन्दोलन पर नजर रखी। लेकिन पार्सन्स, ऑगस्ट स्पाइस और अन्य वक्ताओं के जोशीले भाषण सुनने के बाद उत्साहित भीड़ बिना कोई घटना घटे वहाँ से बिखर गयी। दो दिनों के अंदर ही लगभग 65 हजार से 80 हजार मजदूरों ने हड़ताल कर दी ।
3 मई, आर्बिटर जितुंग के सम्पादक ऑगस्ट स्पाइस ने मैकोर्मिक से आने वाली सड़क पर 6 हजार हड़ताली लकड़हारों की भीड़ को सम्बोधित किया। जैसे ही शिफ्ट बदलने की घंटी बजी, श्रोताओं में से कुछ लोग निकलकर हड़ताल तोड़ने वालों से जवाब–तलब करने के लिए मैकोर्मिक के गेट की ओर चल दिये। ठीक उसी समय इंस्पेक्टर जॉन बॉनफिल्ड वहाँ आ गये और अव्यवस्था फैल गयी । वहाँ क्या हो रहा है यह देखने के लिए स्पाइस वहाँ पहुँचे, लेकिन उन्होंने अपने आपको पुलिस की लाठियों और गोलियों की बौछार से घिरा पाया। कितने लोग मरे और घायल हुए, यह आज तक सही–सही पता नहीं चल पाया। अधिकांश लोग इतने घबराये हुए थे कि अपना इलाज भी नहीं कराना चाहते थे ।
अपमान का घूँट पीये स्पीज भागे–भागे अपने दफ्तर पहुँचे, जहाँ उन्होंने ‘‘मेहनतकशो, हथियार उठाओ’’ नाम से उत्तेजनापूर्ण सर्कुलर लिखा । एक कम्पोजीटर ने यह सोचकर कि और अच्छा शीर्षक बनेगा, उसमें ‘‘बदला लो’’ शब्द जोड़ दिया ‘‘बदले का सर्कुलर कहे जाने वाले इस ज्ञापन की लगभग 1500 प्रतियाँ बाँट दी गयीं । 4 मई को आर्बिटर जिटुंग में स्पाइस का, मैकोर्मिक में हुई घटना पर लेख पढ़कर शिकागो के मजदूर और अधिक क्रोधित हो गये । उसी अखबार में माइकल एसक्वाब का लेख ‘‘वर्गों का युद्ध अब निकट है’’, भी छपा ।
उसी समय नेताओं का एक समूह जिसमें एडोल्फ फिशर और जॉर्ज एंजिल शामिल थे, उन्हें शाम को हे मार्केट में होने वाली रैली के लिए बुलाया गया । फिशर पर वक्ताओं को बुलाने और पर्चे की छपाई की जिम्मेदारी थी। उनके द्वारा छापा गया मूल पर्चा इस पंक्ति पर खत्म होता था ‘‘मेहनकशों हथियार उठाओ और पूरी ताकत के साथ सामने आओ’’ परन्तु ऑगस्ट स्पाइस ने भाषण देने से मना कर दिया, जब तक कि यह लाइन हटा नहीं दी जाती । मूल पर्चे को बदल दिया गया, लेकिन पहले वाले पर्चे की कुछ प्रतियाँ भी बाँटी गयी ।
उस रात लगभग 2500 लोग इकट्ठे हुए । एडोल्फ फिशर थक कर कुछ मिनटों के लिए सो गये, फिर धीमे–धीमे चलकर जैक के हॉल में शराब पीने गये । जार्ज अपनी पत्नी और कुछ दोस्तों के साथ ताश खेलने के लिए अपने घर पर ही रुक गये । जब कोई वक्ता उपस्थित नहीं हुआ तो भीड़ अशान्त हो गयी ।
स्पाइस साढ़े आठ बजे पहुँचे । उनका जर्मन में भाषण देना तय था । स्पाइस जल्दी में नहीं थे क्योंकि तब विदेशी भाषाओं में भाषण अन्त में होते थे लेकिन भीड़ को असमजंस में पाकर वे तुरंत एक पुरानी गाड़ी पर चढ़ गये और बोलना शुरू कर दिया । स्पाइस की सहायता के लिए कुछ साथी दूसरे वक्ताओं को भीड़ में खोजने लगे ।
अल्बर्ट पार्सन्स अभी–अभी सिनसिनाटी से वापस आये थे । वे लगभग 15 मिनट बाद दिखाई दिये और स्पाइस के बाद उन्होंने बोलना शुरू किया । लगभग 10 बजे पार्सन्स ने मंच सैम्युअल फिल्डेन को सौंप दिया और अपनी पत्नी लूसी के साथ एक शराबखाने में फिशर का साथ देने चले गये ।
फिल्डेन ने 4 मई की दोपहर के बाद का समय वेलदिन कब्रिस्तान में सड़क बनाने के लिए बजरी ढोने के काम में दिया था और उन्हें इस रैली के आयोजन की जानकारी नहीं थी, हे मार्केट पहुँचने के कुछ समय बाद ही उन्हें इसका पता चला । वे बोलने के लिए पहले से तैयार नहीं थे । उन्होंने भीड़ को बाँधे रखने की पूरी कोशिश की। जिस समय इंस्पेक्टर बॉर्न फिल्ड और उसके 180 सिपाही वहाँ पहुँचे, वे भाषण समाप्त करने की तैयारी कर रहे थे ।
बॉर्न फिल्ड ने सभी से ‘‘तुरन्त और शान्तिपूर्वक’’ बिखर जाने की माँग की । ‘‘लेकिन कैप्टन, हम यहाँ शान्तिपूर्वक हैं’’ फिल्डेन ने यह जवाब दिया ही था कि एक विस्फोट ने भीड़ को हिला दिया । पुलिस कतारों के बीच एक बम फेंका गया था । इसके बाद पुलिस ने अंधा–धुंध गोली चलानी शुरू कर दी । जिस समय यह सब खत्म हुआ, चार आम नागरिक और 7 पुलिस वाले मारे गये । सैमुएल फिल्डेन, ऑगस्ट स्पाइस के भाई और आम नागरिक व पुलिस को मिलाकर 100 से 200 लोग घायल हुए । फिर भी, केवल एक सिपाही माथियास देगान ही बम से मरा, बाकी पुलिस की गोलीबारी में घायल हुए ।
एक अज्ञात पुलिस वाले ने 27 जून को शिकागो ट्रिब्यून को बताया ‘‘मैं भी जानता हूँ कि यह एक सच है, बहुत बड़ी संख्या में सिपाही एक-दूसरे की रिवाल्वर से ही घायल हुए थे, उस दिन हे मार्केट में जिस व्यक्ति ने पुलिस बल का संचालन किया, उसकी ओर से यह बहुत बड़ी गलती थी । ऐसी हत्याएँ या मारकाट पहले नहीं देखी गयी। बॉर्न फील्ड ने यह बहुत बड़ी गलती की थी । इसके परिणामस्वरूप घायल और मारे गये लोगों के लिए वही जिम्मेदार है ।’’
बम किसने फेंका यह एक रहस्य है । पुलिस दावा करती है कि वह एक अराजकतावादी था, अल्बर्ट पार्सन्स का मानना था कि वह एक हड़ताल तोड़ने वाला घुसपैठिया था । गर्वनर आल्टगेल्ट ने 1893 में निष्कर्ष निकाला कि सम्भव है कि बम किसी दुश्मनी का बदला लेने वाले व्यक्ति ने फेंका हो ।’’
पॉल एवरिक ने व्यापक अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला कि बम किसी अराजकतावादी द्वारा फेंका गया । सबसे संदिग्ध अराजकतावादी एडोल्फ स्नोबेल्ट था जो माइकल एसक्वाब का साला था । परन्तु एवरिक ने, जो बम काण्ड के बाद दो बार पकड़े और छोड़े गये, स्नोबेल्ट को इसका जिम्मेदार नहीं माना ।
बम फेंकने वाले को देखने वाले एक मात्र निरपेक्ष गवाह जॉन ब्रेनेट ने जो ब्योरा दिया उससे स्नोबेल्ट का कोई मेल नहीं था और एवरिक ने चिन्हित किया कि स्नोबेल्ट के क्रिया कलाप बम फेंकने वाले के रूप में असंगत जान पड़ते हैं । ‘‘यदि स्नोबेल्ट की जेब में बम होता तो क्या वह बम विस्पफोट की घटना के बाद माइकल एसक्वाब को छुड़ाने के लिए पुलिस स्टेशन जाता ? ये प्रश्न उस पर लगाये अभियोग पर संदेह करने के लिए पर्याप्त हैं ।
एवरिक द्वारा इस निर्णय पर पहुँचने के पीछे कि बम फेंकने वाला अराजकतावादी है । मुख्यतः दो अराजकतावादियों– रॉबर्ट रित्जेल और डायर लुम द्वारा दिये गये वक्तव्य थे । मृत्युदण्ड के बाद रित्जेल ने डॉ– अर्बन हार्टुंगे को बताया कि ‘‘बम फेंकने वालों का पता है, पर हमें अब इस बात को भूल जाना चाहिए ।’’ अगर उसने अपना अपराध स्वीकार कर भी लिया होता, तो हमारे साथियों की जान नहीं बचायी जा सकती थी ।
1891 मे लिखे एक निबंध में डायर लुम कहते हैं कि 4 मई की दोपहर को ऑगस्ट स्पाइस ने बाल्थासार राउ को उन जुझारू लोगों को यह बताते के लिए भेजा था कि हे मार्केट में हथियार के साथ नहीं आना है । लेकिन लुम लिखते हैं कि एक आदमी ने आदेश का उल्लंघन किया जो हमेशा खुद ही निर्णय लेता था । उसने यह कार्य अपनी जिम्मेदारी पर किया । वह बलि का बकरा बनने की अपेक्षा हत्याकाण्ड के विरोध की तैयारी करके मर जाने को वरीयता देता था ।
लुम का मानना है कि मुकदमें की पैरवी करने वाले कहते हैं कि 8 लोगों में से कोई भी बम फेंकने वाले को नहीं जानता था । हालाँकि उनमें से दो लोग बाद में उसे पहचान गये, लेकिन इनमें ‘‘न तो स्पाइस थे और न ही पार्सन्स ।’’ एवरीक का मानना था जिन दो लोगों ने बम फेंकने वाले को पहचाना, वे एंगेल और फिशर थे । लुम के अनुसार बम फेंकने वाले का नाम मुकदमें के दौरान ‘‘कभी चिन्हित नहीं किया गया और आज वह जनता के लिए अज्ञात है ।’’
महान महिला अराजकतावादियों में से एक, लुम की दोस्त और समर्थक बोल्टायरिन दे क्लेयरे की बातों में भी बम फेंकने वाले की पहचान अन्तर्निहित थी । 1899 के अपने स्मारक भाषण में दे क्लेयरे ने कहा ‘‘हे मार्केट में फेंका गया बम उस व्यक्ति का प्रतिरोध है जो इस बात का समर्थक था कि बोलने की स्वतंत्रता और लोगों के शान्तिपूर्वक इकट्ठा होने के कानूनी अधिकार की घोषणा को कम नहीं किया जाना चाहिए ।’’
और 1907 में द क्लेयरे ने कहा कि ‘‘हमारे साथी मारे जा रहे हैं, मैं देख सकती हूँ कि बम फेंकने वाले की अपनी पहचान उद्घाटित करने की कोई मंशा नहीं है । एक नकाबपोश मौन व्यक्ति के रूप में उसने पूरी दुनिया को पार किया और दुनिया पर अपनी छाप छोड़ गया । अब इस बात का भला क्या मतलब है कि वह कौन था, वह उन 8 आदमियों में से नहीं था जिन्हें राज्य ने बम फेंकने के दोष में दण्ड दिया ।’’
इन सुरागों से एवरीक ने निष्कर्ष निकाला कि बम फेंकने वाला सम्भवतया उस जर्मन अराजकतावादी सशस्त्र समूह का सदस्य था जिससे बाल्थासार राउ ने सम्पर्क किया था । उसकी पहचान अराजकतावादियों के एक छोटे से घेरे के अलावा पूर्णतया अज्ञात बमी रही और जॉन वर्नेर की गवाही के अनुसार उसकी लम्बाई 5 फुट, 9 या 10 इंच थी । उसके चेहरे पर मूँछे थीं पर दाढ़ी नहीं ।
अपनी पुस्तक के प्रकाशन के बाद एवरीक को डॉ– अदाह मोरर का एक पत्र मिला जो कैलिफोर्निया के बर्कले में मनोवैज्ञानिक थी । अपने पत्र में उन्होंने किसी ‘‘जेपी मेंग’’ के बारे में पूछा । एवरीक ने जिसकी पहचान 1883 की पीटर्सबर्ग कांग्रेस में शिकागो के अराजकतावादी सदस्य के प्रतिनिधि के रूप में की । मोरर ने पूछा, क्या पहले वाली बातें गलत थीं । मोरर का विश्वास था कि उस बातचीत का सम्बन्ध उनके नाना से है, जिस पर स्वयं मोरर को संदेह था कि बम उन्हीं ने फेंका था ।
छानबीन करने पर एवरीक ने पाया कि प्रतिनिधि का नाम जॉर्ज ही था न कि जे–पी– मेंग । तब डॉ– मोरर द्वारा दिये गये इस सुझाव का क्या हुआ कि बम फेंकने वाला मेंग था । मोरर ने एवरीक को ये जानकारी दी– मेंग का जन्म बावरिया में 1840 के आसपास हुआ और वह वयस्क होने पर अमरीका आया । वह शिकागो में बस गया और चाय बनाने का काम ढूँढा, शादी की और दो लड़कियों– लुईस और केंट का बाप बना । लुईस मोरर की माँ थी । 1883 में मेंग ने मजदूरों के अन्तरराष्ट्रीय संघ के उत्तरी समूह की सेना में काम शुरू किया । इसके सदस्यों में ऑस्कर नीबे, बाल्थासर राउ, रूडोल्पफ स्नाउबोल्ट और लुईस लिंग शामिल थे ।
लुईस ने कई बार अपनी बेटी को बिना व्याख्या किये बताया कि मेंग ने ही बम फेंका था– ‘‘यह वही था’’ उसने कहा । लुईस ने यह भी बताया कि हे मार्केट वाली घटना के दिन रूडोल्फ नामक एक व्यक्ति उसके घर में घुसा था । रूडोल्फ उसके पिता का साथी था और ‘‘वे दोनों पूरी रात रसोईघर में बातें करते रहे ।’’
मोरर के अनुसार 1907 में उसके जन्म के कुछ वर्ष पहले मेंग एक सैलून में लगी आग में मारे गये और वे मेंग का हुलिया बता पाने में असमर्थ थी । इतने पर भी एवरीक को मोरर की कहानी अकाट्य लगी । ‘‘स्वीकार किये गये तथ्यों से मेल खाने के कारण उदाहरण के लिए इसमें एडोल्फ स्नोबेल्ट के विषय में दी गयी जानकारी जिसके बारे में, लोग आम तौर पर नहीं जानते हैं, और एक जर्मन अराजकतावादी डायर लुम द्वारा बम फेंकने वाले व्यक्ति के विषय में दिया गया विवरण डायर लूम शिकागो समूह का एक ‘खुद मुख्तार’ लड़ाका था, आन्दोलन में जानी–पहचानी शख्सियत, परन्तु वह मुख्य नेताओं में से नहीं था और मुकदमें में इसका नाम भी नहीं था । डॉ– मोरर की कहानी सत्य की परिधि में है और इस पर विश्वास करने में मेरी रुचि है ।’’
बम फेंकने वाले की पहचान ने विद्वानों के समक्ष उलझन पैदा कर दी और यह हे मार्केट मुकदमें में अप्रासंगिक हो गया । अल्बर्ट पार्सन्स, ऑगस्ट स्पाइस, जॉर्ज एंगेल, सैम्युअल फिल्डेन, एडोल्फ फिशर, माइकल एसक्वाब, ऑस्कर नीबे और लुईस लिंग के ऊपर बम फेंकने के लिए नहीं, बल्कि हत्या करने का अभियोग लगाया गया । जिस समय बम फटा, इन व्यक्तियों में से केवल स्पाइस और फिल्डेन, केवल दो ही व्यक्ति वहाँ उपस्थित थे । परन्तु स्टेट अटॉर्नी जुलियस एस– ग्रिनेल ने घोषित किया कि ‘‘इन लोगों को अपराधी सिद्ध करो, इनको उदाहरण बनाओ, इनको फाँसी दो और तुम हमारी संस्थाओं को बचाओ ।
किन विचारों ने सामाजिक ताने–बाने को इतनी भारी चुनौती दी ? अल्बर्ट पार्सन्स ने अराजकतावाद को परिभाषित किया कि यह ‘‘ताकत का निषेध, सामाजिक मामलों में किसी भी प्राधिकार का उन्मूलन, किसी एक व्यक्ति पर दूसरे व्यक्ति के प्रभुत्व के अधिकार को न मानना है । यह सत्ता के कर्त्तव्य का, अधिकार का जनता के बीच स्वतन्त्र और समान रूप से बँटवारा है ।’’ स्पाइस ने कहा– ‘‘अराजकतावाद खून–खराबा नहीं, इसका मतलब लूट और आगजनी नहीं । ये दानवी कृत्य तो पूँजीवाद की चारित्रिक विशेषताएँ हैं । अराजकतावाद का अर्थ सबके लिए शान्ति और सुकून’’ है और लुईस लिंग के अनुसार ‘‘अराजकतावाद का मतलब है किसी एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति पर प्रभुत्व और प्राधिकार का न होना––––’’
फिर भी 21 जून 1886 को जब अदालत में मुकदमा शुरू हुआ तो न्यायालय कक्ष में बम फेंकने के बारे में घिसीपिटी, खून की प्यासी और उन्मादी तस्वीर व्याप्त थी । जब मुकदमा शुरू हुआ, केवल सात लोग हिरासत में थे । बम फटने के बाद बुरे नतीजों के भय से पार्सन्स शिकागो से भाग गये और छह सप्ताह तक गिरफ्तारी से बचने में सफल रहे । लेकिन अपनी पत्नी और अटॉर्नी से विचार–विमर्श के बाद पार्सन्स ने आत्मसमर्पण करके साथियों के साथ मुकदमें का सामना करने का निश्चय किया । हर व्यक्ति इस बात से सहमत था कि इससे पलड़ा उनके पक्ष में झुक जाएगा । इसलिए मुकदमा शुरू होने ही वाला था कि पार्सन्स ने न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और नाटकीय रूप से अधिकारियों के सामने अपने आप को प्रस्तुत कर दिया ।
मुकदमा शुरू से ही एक पहेली बना हुआ था । एक विशेष अभिकर्त्ता अपने मनपसन्द और प्रभावशाली जजों की भर्ती कर रहा था और यह योजना कोई रहस्य नहीं थी ‘‘मैं इन लोगों से आह्वान करता हूँ कि वे अभियुक्तों के साथ हठधर्मितापूर्वक व्यवहार करें और समय जाया न करें । वे ऐसे लोगों को बुलाएँ जिनकी अभियोक्ता को जरूरत है ।’’ यह चाल कामयाब हुई । घटना के शिकार एक पुलिस वाले का रिश्तेदार और ऐसे ही पूर्वाग्रह ग्रस्त लोगों को जूरी में शामिल किया गया ।
मुकदमे के दौरान गवाहों ने झूठ बोला, अपनी कहानियाँ बदली और एक–दूसरे के बयानों का खंडन किया । सबूतों को बदलकर सरकारी पक्ष के अनुकूल बना दिया गया । सरकारी मुकदमे के पक्ष में झूठे सबूत बना लिये गये और सही सबूतों को झुठला दिया गया । मुकदमे का बड़ा हिस्सा अभियुक्तों द्वारा लिखे गये भड़काऊ लेखों पर केन्द्रित था जो शिकागो के उग्र अखबारों से लिये गये थे ।
यह मुकदमा शहर का सबसे दिलचस्प तमाशा बन चुका था और इसमें भारी भीड़ उमड़ रही थी । पूरे मुकदमे के दौरान जूरी के सदस्य ताश खेलते रहे और भद्रलोक जज गैरी के साथ बेंच पर बैठे रहे । जो लोग मुकदमे की कार्यवाही देखने के लिए आये, उनमें रोज सारा नीना स्टुअर्ट क्लार्क वैन जाण्ट भी थी जो विराट सम्पत्ति की वारिस, वासार की स्नातक थी । वैन जाण्ट ने बाद में उस फैशनेबुल शरारत का स्मरण किया ‘‘मैं उस समय किसी भी अभियुक्त को नहीं जानती थी, मुकदमे के नाम पर हो रहे प्रहसन के दौरान मैंने इस आशा से अदालत के कमरे में प्रवेश किया कि अन्दर मुझे मूर्खों, दुष्ट और अपराधी जैसे दिखने वाले लोगों का अनोखा जमावड़ा देखने को मिलेगा और उनमें से किसी को भी वहाँ न पाकर मैं बहुत आश्चर्यचकित हुई कि इस तरह का कोई व्यक्ति वहाँ था ही नहीं, बल्कि वे तो बुद्धिमान, दयालु और देखने में भले लोग थे । मेरे मन में रुचि पैदा हो गयी । लेकिन जल्दी ही मैंने पाया कि अदालत के अधिकारी, खुफिया एजेंसी और सारी पुलिस उन लोगों को दोषी सिद्ध करने पर तुली हुई थी इसलिए नहीं कि उन्होंने कोई अपराध किया था, बल्कि इसलिए कि उनका सम्बन्ध मजदूर आन्दोलन से था ।’’
वैन जाण्ट ने कुक काउन्टी जेल में कैदियों से मिलना शुरू किया और ऑगस्ट स्पाइस से हुई दोस्ती जल्दी ही उससे कहीं गहरे रिश्ते में बदल गयी । लेकिन वैन जाण्ट की मुलाकातों को नये नियम–कानूनों ने बाधित किया, जिसमें सिर्फ कैदियों की पत्नियों को ही मिलने की इजाजत थी । ‘‘मुझे यह साफ लग गया कि कैदियों को न्याय दिलाने के लिए मेरा प्रयास उस खास वर्ग को स्वीकार्य नहीं था, जो उन लोगों को खत्म करना चाहते थे । मेरी सामाजिक हैसियत और जान–पहचान के कारण उनकी यह भावना और बढ़ गयी ।’’ स्पाइस वैन जाण्ट ने आपस में शादी करने का निर्णय लिया, लेकिन अधिकारियों ने सहमति देने से इनकार कर दिया और विवाह का आयोजन स्पाइस की जगह उसके भाई को वैन जाण्ट के साथ खड़ा करके सम्पन्न किया गया ।
शादी के बाद इसके लिए अखबारों ने उसकी निंदा की, उसे पड़ोसियों द्वारा धमकाया गया और उसे अपनी मौसी से विरासत में मिलने वाले पाँच लाख डॉलर से वंचित कर दिया गया, क्योंकि वह एक ‘‘उचित शादी’’ करने में असफल रही, लेकिन वैन जाण्ट स्पाइस अपने उद्देश्य पर डटी रही । उसने स्पाइस की आत्मकथा प्रकाशित करवाई और अपने पति को मृत्युदण्ड के बाद अक्सर वह हे मार्केट में भाषण देने भी जाती थी ।
प्रतिवादियों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण चश्मदीद गवाह शिकागो का मेयर कार्टर हैरीसन था । सम्भावित झड़प से चिन्तित हैरीसन 4 मई की हे मार्केट रैली में गया । कुछ समय बाद जब उसे लगा कि यहाँ कोई खतरा नहीं है तो वह पुलिस स्टेशन गया और उसने वॉनफील्ड से अपने आदमियों को वापस घर भेजने के लिए कहा । वॉनफील्ड इस बात के लिए तैयार हो गया । लेकिन ज्यों ही मेयर वहाँ से गया, उसने अपने आदमियों को हे मार्केट की ओर कूच करने का आदेश दे दिया ।
हैरीसन की गवाही के बावजूद जैसा कि पहले ही उम्मीद थी, अराजकतावादियों को दोषी करार दिया गया । सात पुलिसवालों के बदले सात अराजकतावादियों को फाँसी पर लटकाने की सजा दी गयी । आठवें आरोपी ऑस्कर नीबे को 15 वर्ष का कारावास मिला, जबकि राज्य के अटार्नी ने याचिका दायर की थी कि उसके खिलाफ अभियोग रद्द किया जाय ।
उसके बाद एक साल तक कानूनी और सार्वजनिक जोड़–तोड़ होती रही । लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ । आखिरी दिनों में फील्डेन, स्पाइस और एसक्वाब ने माफी के लिए याचिका दायर की । जिसके लिए उनके साथियों ने उनकी भर्त्सना की । फिर फाँसी से दो दिन पहले स्पाइस ने अपनी याचिका वापस ले ली और दूसरे पत्र में उसने गवर्नर को लिखा कि ‘‘मैं आपसे सात लोगों की हत्या को रोकने की प्रार्थना करता हूँ । उन लोगों का एकमात्र अपराध यही है कि वे आदर्शवादी हैं, कि वे सभी के लिए अच्छे भविष्य की कामना करते हैं । यदि यह कानूनी हत्या जरूरी ही है, तब एक की हत्या कर दी जाय और इसके लिए मैं हाजिर हूँ । गवर्नर ने एसक्वाब और फील्डेन की याचिका मन्जूर कर ली और उनके मृत्युदण्ड की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया ।
6 नवम्बर को तयशुदा फाँसी से पाँच दिन पहले कैदियों को बन्दी गृह से हटा दिया गया और उनकी काल कोठरी की तलाशी ली गयी । पुलिस ने घोषित किया कि लुइस लिंग की काल कोठरी से उन्हें चार बम मिले । पार्सन्स को सन्देह था कि जनता की बढ़ती सहानुभूति के तूफान को थामने के लिए वहाँ बम रखा गया, जबकि दूसरों का मानना था कि लिंग ने ही बम छुपा रखा था ।
जिस समय लुइस लिंग की मृत्यु हुई, तब वह शहीदों में सबसे कम उम्र का, केवल 23 वर्ष का था और सबसे उग्र था, लिंग ने बम बनाया था, बल प्रयोग करने की वकालत की थी और मुकदमे की पूरी कार्रवाई के दौरान उसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी । गवाहों को सुनने की जगह उसे कुछ पढ़ना पसन्द था ।
कैप्टन शाक ने एक पत्र में लिखा कि घृणा से दाँत पीसते हुए, उसकी पाशविक आँखें उसके नेत्र कोटरों से बाहर निकली जा रही थी–––– वह इस प्रकार आग बबूला हो रहा था, जैसे पिंजरे में कैद कोई जंगली शिकारी पशु हो । वह गुस्से में चुप था और उसकी प्रत्येक गतिविधि उसमें जुनून की ऊर्जा को प्रकट कर रही थी जो भयानक था । शाक के अनुसार ‘‘लिंग पूरे शिकागो में सबसे खतरनाक अराजकतावादी था ।’’
लिंग के बारे में अराजकतावादी और उनके समर्थक भी एकमत नहीं थे । स्पाइस उसे ‘‘गैर जिम्मेदार’’ और ‘‘उन्मादी’’ कहता था । माइकल एसक्वाब ने स्वीकार किया कि उसका लिंग से ‘‘दोस्ताना रिश्ता नहीं था’’ और ‘‘निश्चित रूप से एक ऐसा प्राणी था–––– जिसका कोई भी परिचित होना नहीं चाहता ।’’ कुछ समर्थकों को आशा थी कि लिंग को पागल घोषित करके फैसला उल्टा जा सकता है ।
लेकिन दूसरे कई लोग उसे नायक मानते थे । वोल्तेयरिन द क्लेयरे ने लिंग को ‘‘सुन्दर और बहादुर लड़का’’ बताया और एम्मा गोल्डमान ने ‘‘आठ लोगों में सबसे शानदार नायक’’ कहा । ‘‘उसकी कभी ने झुकने वाली भावना, अभियोग लगाने वालों और जजों के प्रति पूर्ण तिरस्कार, उसकी इच्छा शक्ति, उस 22 वर्षीय लड़के के बारे में हर चीज उसके व्यक्तित्व में रूमानियत और सुन्दरता ला देती थी । वह हमारे जीवन का प्रकाश पुंज बन गया ।’’
लिंग द्वारा अदालत में दिया गया अन्तिम जोशीला भाषण उस व्यक्ति की झलक प्रस्तुत करता है–
‘‘मैं तुम्हें बेलाग–लपेट और स्पष्ट बता रहा हूँ कि मैं ताकत का समर्थक हूँ । कैप्टन शाक को मैंने पहले ही कहा था कि अगर वे हमारे खिलाफ तोप का इस्तेमाल करते हैं, तो हम उनके खिलाफ डायनामाइट का प्रयोग करेंगे । मैं दोहराता हूँ कि मैं आज की ‘व्यवस्था’ का दुश्मन हूँ और दोहरा रहा हूँ कि जब तक मुझमें साँस बाकी है अपनी पूरी ताकत के मुकाबला करूँगा । मैं दोबारा बिना लाग लपेट के घोषणा करता हूँ कि मैं बल प्रयोग के पक्ष में हूँ । शायद आप सोचते हैं कि आप और अधिक बम नहीं फेंकेंगे, लेकिन मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मैं फाँसी के तख्ते पर खुशी से मरूँगा । मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि जिन सैकड़ों–हजारों लोगों से मैंने बात की, वे मेरे शब्दों को याद रखेंगे और जब आप हमें फाँसी पर लटकाओगे, तब– मेरे शब्दों को गौर से सुनो, वे बम फेकेंगे! और इसी आशा में मैं तुमसे कहता हूँ– मैं तुम्हें तुच्छ समझता हूँ । मैं तुम्हारे कानून व्यवस्था और सेना के बल पर चलने वाले शासन का तिरस्कार करता हूँ । इसके लिए मुझे फाँसी दो!
11 नवम्बर 1887, ‘‘काले शुक्रवार’’ को ऑगस्ट स्पाइस, जॉर्ज एंगेल, एडोल्पफ और अल्बर्ट पार्सन्स के लिए फाँसी का तख्ता तैयार किया गया और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया ।
अपने दो बच्चों और मित्र लिज्जी होम्स के साथ लूसी पार्सन्स ने फाँसी पर चढ़ने से पहले अपने पति को देखने की भरसक कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनकी मदद करने का वादा करके उन्हें एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर घुमाया और फिर पुलिस लाइन के बाहर भेज दिया । जैसे–जैसे समय बीतता गया, बच्चे ठण्ड से ठिठुरने और रोने लगे । लूसी ने पुलिस लाइन को पार करने की कोशिश की । लूसी, लिज्जी और दोनों बच्चों को गिरफ्तार कर लिया गया, उन्हें शिकागो एवेन्यू स्टेशन ले जाया गया और निर्वस्त्र करके तलाशी लेने के बाद अलग–अलग कोठरियों में बन्द कर दिया गया ।
दोपहर के कुछ समय बाद एक महिला सहायिका वहाँ आयी और घोषणा की कि अब सब ‘‘खत्म हो चुका है ।’’ लिज्जी होम्स अपनी सहेली की पीड़ा भरी रुदन को सुनती रही, जब तक उन्हें रिहा नहीं कर दिया गया । लुइस लिंग ने फाँसी के तख्ते को बिलकुल ही नहीं देखा । फाँसी के एक दिन पहले लिंग ने एक सिगार पिया और उसके बाद उसने मुँह में डायनामइट रखकर आग लगा ली, जिसके धमाके में उसका आधा सिर उड़ गया ।
मरने से पहले वह पीड़ादायक दर्द से कई घण्टों तक तड़पता रहा । कुछ लोगों का दावा था कि पुलिस ने सिगार में डायनामाइट रखा, लेकिन अधिकांश लोग मानते थे कि विद्रोही लिंग ने फाँसी देने वालों को धोखा देने के लिए ऐसा किया ।
एलेक्जेन्डर वर्कमैन ने एक पत्र में एम्मा गोल्डमैन को लिखा कि ‘‘पुलिस अच्छी तरह जानती थी कि लिंग को मरना है । फिर वह उसे क्यों मारना चाहते । इसके अलावा लिंग सम्भवतः ऐसा आदमी था जो दूसरों के बजाय खुद अपने हाथों मरना चाहता था ।’’
वाल्तेरिन दे क्लेयर जानती थीं कि लिंग ने आत्महत्या की है और 1897 में उन्होंने ‘‘अपने भाषण में कहा कि लिंग ने 10 नवम्बर को अपने मित्र द्वारा दिये गये डायनामाइट से कानून पर विजय हासिल कर ली!’’ दे क्लेयर ने अपने पुत्र को बताया कि वह दोस्त डायर लुम था । लुम ने अपने दोस्त को लिखा ‘‘कि वह समर्पित और भयमुक्त था । कोई भी तात्कालिक इच्छा उसको अपने सिद्धांत से विमुख नहीं कर सकी । लिंग बच्चे की तरह जिया और उसी तरह मरा ।’’
फाँसी के बाद शहीदों के पार्थिव शरीरों को उनके घर वापस भेज दिया गया । लिंग का परिवार नहीं था । उसे जॉर्ज एंगेल के घर और खिलौने की दुकान पर ले जाया गया, जिनसे उसका घनिष्ठ सम्बन्ध बन गया था । किसी ने लिंग के शरीर को पूरे रास्ते प्रदर्शित करने के बदले हजारों डॉलर का भुगतान करने की पेशकश की, जिसे एंगेल की विधवा ने गुस्से में ठुकरा दिया ।
एल्बर्ट के शरीर को जब उसके तीसरी मंजिल के छोटे से मकान में लाया गया, तो लूसी ब्राउन रोते–रोते बेहोश हो गयी । लिज्जी होम्स पूरे दिन उसके साथ रही, जबकि सैम्युएल फिल्डेन की पत्नी उसके दोनों बच्चों को दिलासा देने की कोशिश कर रही थी ।
वह घर, जहाँ ऑगस्ट स्पाइस अपनी माँ और भाई–बहनों के साथ रहता था अभी भी शिकागो वीकर पार्क में है जैसा कि 1887 डेली न्यूज अखबार में वर्णित किया गया था उसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है । ‘‘कि लम्बी सफेद धारियाँ और काला क्रेप कागज दरवाजे की घंटी से लटका हुआ था और मातम के सबसे बड़े चिन्हों में क्रेप कागज से बना बड़ा सा काला गुलाब था, जिसके अन्दर से बाहर लाल प्रकाश पुंज हवा में लहरा रहा था––––
13 नवम्बर को स्पाइस के अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई । उसके ताबूत को बग्गी में रखा गया, जबकि उसके परिवार वाले इन्तजार में खड़ी एक गाड़ी में बैठे हुए थे । शिकागो की सड़क पर चल रही शवयात्रा सभी शहीदों के शव को लेने के लिए उनके घर पर रुकती । शिकागो की सड़कों पर बग्गी और वाहन गाड़ी के पीछे लोगों की कतार लगी थी और वे आहत और उदास मन से जुलूस में चल रहे थे । यह शिकागो के इतिहास की सबसे बड़ी शव यात्रा थी, क्यों अर्थी के पीछे लगभग दो लाख लोग पंक्तिबद्ध होकर चल रहे थे ?
भयग्रस्त अधिकारियों ने सख्त निर्देश जारी कर दिये कि कोई बैनर नहीं, झण्डे नहीं और न ही कोई हथियार । संगीत में केवल शोकगीतों की इजाजत थी। प्रदर्शन और भाषण की मनाही थी और शवयात्रा केवल शहर के बाहरी इलाके से और दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच ही निकाली जा सकती थी । निषेधाज्ञा केवल एक बार तोड़ी गयी । ‘‘जैसे ही शवयात्रा मिलवॉकी एवेन्यु पहुँची, तभी गृहयुद्ध के दौर के एक बुजुर्ग सेनानी तेजी से पहली कतार के सामने आये और उन्होंने एक छोटे से अमरीकी झण्डे को लहराया । पुलिस ने उन्हें परेशान नहीं किया, वे झण्डे को जुलूस के पीछे ले गये ।
शवयात्रा पुराने विसकोसिन स्टेशन पर खत्म हुई, जहाँ विशेष रूप से किराये पर लिए गये रेल के डिब्बे परिजन को जंगल में वालदेन कब्रगाह ले जाने के लिए इन्तजार कर रहे थे । दूसरे लोग पैदल चल कर कब्रगाह पहुँच गये, जहाँ 10,000 लोग विलियम ब्लेक को सुनने के लिए इकट्ठा हुए। अराजकतावादी अटार्नी ने प्रशस्ति भाषण दिया ।
उन लोगों को अराजकतावादी कहा जाता था । दुनिया के सामने उन्हें मार–काट, दंगा–फसाद और खून–खराबे से प्रेम करने और बेवजह इस वर्तमान व्यवस्था के प्रति घृणा से भरे हुए लोगों के रूप में प्रस्तुत किया गया । ये बातें सच्चाई का सरासर माखौल उड़ाने जैसी हैं । वे लोग शांति से प्यार करते थे, जो उन्हें जानते थे वे उन्हें प्यार करते थे, उन पर विश्वास करते थे । वे लोग जीवन के प्रति उनकी निष्ठा और ईमानदारी को समझते थे–––– और अराजकतावादी के रूप में उनके सम्पूर्ण विचार और दर्शन को भी, कि वे जनता का राज लाना चाहते थे, जिसे इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है– ‘‘व्यवस्था बिना जोर जबरदस्ती के’’ ।
जैसे ही दिन ढला, ऑगस्ट स्पाइस, अल्बर्ट पार्सन्स, जार्ज एंगेल, एडोल्फ फिशर के मृत शरीरों को अस्थायी शवगृह में रखा गया । 18 दिसम्बर को उनके पार्थिव शरीर को स्थायी रूप से कब्रगाह में स्थानान्तरित कर दिया गया ।
आज अल्बर्ट विनर द्वारा बनायी गयी इमारत हे मार्केट कब्रगाह की शोभा बढ़ा रही है । यह ताँबे से बना है और ‘मार्सिलेज’ (फ़्रांसीसी क्रान्ति का गीत) से प्रेरित है । स्मारक के आधार स्तम्भ पर अंकित शब्द ऑगस्ट स्पाइस के हैं जो उन्होंने फाँसी के तख्ते से चीखते हुए कहे थे– ‘‘वह दिन आएगा जब हमारी चुप्पी हमारे उन शब्दों से अधिक प्रभावशाली होगी, जिन्हें आज तुम दबा रहे हो ।’’ गवर्नर जॉन अल्टगेल्ड के क्षमा संदेश का एक अंश उसके पीछे अंकित है, उन आठ शहीदों में से सैम्युअल फिल्देन को छोड़कर बाकी को यहीं दफनाया गया ।
हे मार्केट इमारत के ईद–गिर्द जाने–माने कार्यकर्ताओं की कब्रें हैं जो पार्सन्स की पत्नी लूसी और उनके दो बच्चों तथा उसके बगल में नीना जैण्ट स्पाइस की कब्र से घिरी है । वैन जैण्ट की कब्र पर नाम नहीं है क्योंकि इसके लिए पैसे नहीं थे ।
स्मारक के नजदीक ही राजधर्म विरोधियों की कब्रें भी कतार में हैं, जहाँ एम्मा गोल्डमैन की कब्र पर एक बड़ा सा शिलालेख है । उनकी मृत्यु 1940 में कनाडा में हुई थी । उसके पास ही केली, एलिजाबेथ गर्ली पिलन, विलियम जैड फॉस्टर, यूजेन डेनिस, वाल्टेरिन डे क्लेयरे, बेन, रीटमैन और अलक्जेंडर ट्रेचेनबर्ग की साधारण पत्थर की मूर्तियाँ बनी हैं ।
‘‘बिग बिल’’ के बाद 1928 में हेवुड की मास्को में मृत्यु हुई । उनका आधा शरीर क्रेमलिन की दीवार में दफनाया गया और आधा वालदेइ पहाड़ के ऊपर से चारों ओर बिखेर दिया गया । जो हिल को 19 नवम्बर 1915 में उटाह की सरकार ने फाँसी पर चढ़ाया, जिसे आई डब्ल्यू–डब्ल्यू के द्वारा शिकागो वापस लाया गया । पाँच हजार लोग जो के पार्थिव शरीर को अन्तेष्टि से पहले अन्तिम विदाई देने के लिए थैंक्स गीविंग डे के जुलूस में शामिल हुए । उसके बाद उनकी अस्थियाँ उटाह को छोड़कर अमरीका के सभी प्रान्तों, दक्षिण अमरीका, यूरोप, एशिया, दक्षिण अप्रफीका, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के लिए लिफाफे में भरकर पहुँचा दी गयी । 1 मई 1916 को उन लिफाफों को एक साथ खोला गया और जो हिल पुरी दुनिया में फैल गये । इलियानोस प्रान्त में अस्थियाँ बिखेरी गयी ।
और उसके अलावा मोर्ट शाफनर भी हैं जिनकी मृत्यु 1973 में हुई थी । जब हाईस्कूल में थे तभी 18 साल की उम्र में शाफनर ने वियतनाम युद्ध का विरोध करने वाले चार अध्यापकों पर की गई फायरिंग का विरोध किया । उसने नील्साऊनशिप स्कूल बोर्ड तक दौड़ लगा कर चुनाव के नियमों को चुनौती दी । उसका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया लेकिन तीन सप्ताह बाद उस कानून को बदल दिया गया । जब वह बीस साल की उम्र में अचानक हृदयाघात से मर गया तब उसके परिवार ने उसे यहाँ दफनाने का फैसला लिया, ताकि वहाँ आने वाले बाल्डेन को याद दिलायें कि सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष जारी है ।
(यह लेख हे मार्केट के अराजकतावादियों की सौवीं बरसी की याद में मंथली रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित हुआ था जिसे बाद में मंथली रिव्यू प्रेस से प्रकाशित पुस्तक हिस्ट्री एज इट हैपन्ड में संगृहीत किया गया.यह पुस्तक हिंदी में गार्गी प्रकाशन से इतिहास जैसा घटित हुआ शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है. प्रस्तुत लेख का अनुवाद दिनेश प्रखर ने किया है. )